बीचारा अनपढ़, गांव का किसान हु, विकास नहीं समझता हूँ, कोई समझा दो?
यह लोग कहते है विकास हो रहा है। विकास के नाम पे ये सड़के, हाईवे बनाते है और दूर दूर के शहरों को जोड़ देते है। पर इनके हाईवे बनाने के चक्कर में ये लोग हमारे गांव बाँट देते है, पहाड़ काट देते है, जंगल उजाड़ देते है और खेत छीन लेते है। हमे समझाया जाता था पहाड़ जंगल खेत सब जीवित रहने के लिए बहुत ज़रूरी है लेकिन सूट बूट में यह पढ़े लिखे लोग आके सब नष्ट करके चले जाते है। कहते है विकास के लिए ज़रूरी है। खैर पढ़े लिखे लोगो के आगे मेरा क्या कहना, कुछ तो सोचा ही होगा।
अब रोड पे आलीशान गाड़ियां तो आ-जा रही है लेकिन में तो आज भी अपनी बैल गाडी में घूम रहा हूँ। कहते है रोड मेरा विकास करेगी लेकिन रोड के लिए मेरे पास तो कोई गाड़ी नहीं है, उल्टा मेरी बैल को रोड पे जाने से बचाना पड़ता है कही गाड़ी से टकरा कर मर न जाए। पहले कभी ऐसी बीमारिया न फैलती थी, लेकिन जब से यह रोड बानी है बीमारियां बढ़ती ही जा रही है। लगता है कोई नए कीटाणु शहरों से यहाँ आ रहे है पर में अनपढ़ ये सब कहा जानु। इंसानो को छोड़ो अब तो हमारी फसल में भी नयी नयी बीमारियां और कीड़े फ़ैल रहे है। बड़े अफसर लोग कहते है कीटनाशक डालो, आज तक सुना था कीटनाशक आदमी आत्महत्या करने के लिए लेता है लेकिन अब यह बोलते है इसे खाने में ही डाल दो। पहले में डरता था की कही कोई बीमार न पड़ जाये मेरी कीटनाशक से भरी सब्ज़िया खाके, लेकिन अब फसल उसके बिना न उगती है और बड़े लोग तो इसे ही विकास बोलते है, तो यह अनपढ़ क्यों ज़्यादा दिमाग लगाए। वैसे भी पहले गांव के लोग ही सब्ज़ी खरीदते थे अब न जाने शहरों में कौन खरीदता होगा, मुझे तो सिर्फ एक ट्रक वाले को देनी होती है फिर वो जाने उनका काम जाने।
बिजली के तार अब सर के ऊपर से जा रहे है लेकिन हमारे घर तो आज भी अँधेरे में है। पता नहीं बिजली किसको जा रही है। कहते है शहरों में इसकी बहुत ज़रुरत है। बिजली बनाते तो ये हमारे पास की कोयला खदान से ही है पर हमे नहीं देते। पहले नदिया साफ़ और बारह महीने बहती थी अब विकास हो गया है, डैम बन गए है तो पानी तीन महीने ही आता है। कहते है हम तुम्हे खेत सींचने के लिए मुफ्त में दे रहे है पानी। पर पानी तोह हम पहले नदी से भी मुफ्त में ही लेते थे वो भी बारह महीने। पता नहीं इतना सारा पानी डैम में जमा करके यह किसको देते है। कहते है शहरों में इंडस्ट्री को जाता है। एक इंडस्ट्री हमारे गांव के पास में भी खुली है, रोड आने के बाद, कहते है बहुत नौकरी लाएगी गांव का विकास होगा। लेकिन जब से इंडस्ट्री खुली है गांव के कुए सूखे पड़ रहे है, नदी प्रदूषित हो रही है। अब तो हमे अपने खुद के कुए के पानी को पीने से डर लगता है। खेती में गन्दा पानी इस्तेमाल करते हे, दुःख तो होता है की खाने में गन्दा पानी मिला रहे है लेकिन क्या करे साहब विकास हो रहा है और यह विकास का पानी है।
मुझे लगा था विकास होगा तो गांव में अच्छा स्कूल और हॉस्पिटल आएगा, लेकिन अब यह कहते है रोड बनायीं है अब शहर जाके पढ़लो, इलाज करवालो। पढ़ने के लिए बच्चे बाहर जाते है लेकिन फिर वापस ही नहीं आते है। वापस आते भी है तो उन्हें न खेती न मज़दूरी करने आता है या करने की इच्छा जताते है। हमारे ही बच्चे हमारे काम को बेकार ठहराते है। आज तो हम खेत झोत रहे है लेकिन विकास होने के बाद हमारे बच्चे नहीं झोतेंगे। पता नहीं इस विकास के बाद ये सब विकास प्रेमी लोग खाना कहा से लाएंगे। खैर इतना विकास हो रहा है तोह कुछ तो ये लोग खाना उतपादन के लिए भी कर लेंगे।
मैंने यह लेख इसलिए लिखा है ताकि इसे पढ़ने वाला एक बार फिर से विकास के इस रूप को परखे। हमे बचपन से यही सिखाया जाता है की रोड, बिजली और शहरी ज़िन्दगी विकास है, मशीनो और कीटनाशकों से की हुई उपज विकास है, बड़े डैम और आराम की ज़िन्दगी विकास है। हम इस विचार में इतना खो गए है की हमे ज़मीन पे असलियत में जो हो रहा है वो दिख नहीं रहा है। दिन पर दिन हमारे खेत खलियान को शहरों की ज़मीन और फार्महाउस बनायीं जा रही है, गांव का युवा अशिक्षित है, अपनी ज़मीन से प्रेम नहीं करता। इस विकास में हमारी नदियाँ प्रदूषित हो रही है, शिक्षा सिर्फ रोज़गार तक सीमित हो गयी है, मेहनत मज़दूरी की कोई इज़्ज़त नहीं रही है। हम सभी लोगो को एक बार फिर से ये विकास की परिभाषा सोचनी पड़ेगी।