देश में स्वास्थ्य देखभाल की बुरी हालत: निजी फायदे में डूबा एक कुलीन पेशा

विश्व स्वास्थ्य संस्था के मुताबित भारत में पिछले कुछ वर्षो से प्रति वर्ष ४(4 ) करोड़ भारीतय निजी अस्पतालों के इलाज के खर्चो के कारन गरीबी की सीमा रेखा के नीचे आ जाते है। इस गंभीर स्थिति के पीछे क्या कारन हो सकते है?

डिस्सेंटिंग डायग्नोसिस एक किताब है जो डॉ. अरुण गद्रे और डॉ. अभय शुक्ल ने इसी विषय में लिखी है। इस किताब में ७८ (78) डॉक्टरों ने मिलकर इस गंभीर हालत के पीछे की वजह बताई है। आजकल हम सब ही आपस में यह बात कर रहे है की स्वास्थ्य के इलाज पे खर्चे बढ़ते ही चले जा रहे है और साथ ही साथ आम आदमी बीमार भी ज़्यादा पड़ रहा है। इसके पीछे का एक बहुत बड़ा कारन निजी हॉस्पिटल और कॉर्पोरेट अंदाज़ के हॉस्पिटल है। बढ़ते खर्चे के सिवाए कॉर्पोरेट हॉस्पिटल में कदाचार भी बढ़ता जा रहा है। में इस किताब में दिए कुछ कारणों को नीचे सूचित कर रहा हूँ।
१. डायग्नोसिस के वक़्त घपला: पैथोलॉजी लैब्स और निजी हॉस्पिटल और डॉक्टरों की आपसी सम्बन्ध होते है। इन सम्बन्धो का फ़ायदा उठाते हुए डॉक्टर गलत पैथोलॉजी रिपोर्ट बना देते है। इन रिपोर्टो को आपको दिखा कर डॉक्टर आपको एक रोगी घोषित कर देते है जबकि आप पूरी तरह से स्वस्थ है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि आप अपना किसी प्रकार का इलाज कराये और डॉक्टर या हॉस्पिटल उसकी तनख्वा आपसे ले सके। रिपोर्ट में डॉक्टर और लैब वाले मिलके उलटे सीधे लेवल्स लिख देते है ताकि मरीज़ को लगे की वोह सच में बीमार है या उसके शरीर में कोई गंभीर कमी है।
२. बेवजह की जांच पड़ताल, ऑपरेशन और सर्जरी: मरीज़ को देखते ही डॉक्टर 90 प्रतिशत बार बता देता है की उससे क्या बीमारी है, इसके बावजूद डॉक्टर बेवजह के मेहेंगे टेस्ट करवाते है या फर्जी के ऑपरेशन और सर्जरी कर देते है। डॉक्टर्स ऐसा इसलिए करते है क्योंकि उन्हें लैब्स वाले टेस्ट करने का कमीशन देते है, अगर वह किसी और डॉक्टर या स्पेशलिस्ट के पास आपको भेजते है तो वो भी डॉक्टर को कमीशन देते है। इस कमीशन के लालच में डॉक्टर फालतू के टेस्ट, ऑपरेशन और सर्जरी करवाते है और बेचारे लाचार मरीज़ो से पैसे बटोरते है।
३. बेवजह दवाइयां लिखना: आजकल डॉक्टर जैसे ही MBBS करके कॉलेज से बहार आता है उसे दवाइयों की कंपनी के कर्मचारी अपने गेरे में ले लेते है। यह कर्मचारी अपनी कंपनी की दवाईयां, इन डॉक्टरों को लिखने के लिए दबाव डालते है या डॉक्टर को खरीद लेते है। दवाईयों की बड़ी बड़ी भारतीय और विदेशी कंपनियां, डॉक्टरों को लाखो रुपये महीने के और विदेशी यात्राओं पे भेजके और बड़ी बड़ी कॉन्फरेंसों में बुला के खरीद लेती है। दवाइयों की कंपनी का इतना दबाव इन डॉक्टर पे होता है की कोई डॉक्टर जो इन कंपनी के साथ बिना जुड़े सचाई से काम करना चाहे तो उसकी इज़्ज़त नकली कहानिया बना के या उसको सभी मेडिकल कॉन्फरेंसों के बहार रख के ख़तम कर दी जाती है।
४. मेहेंगी दवाईयां: अगर आप गौर करे तो ऐसे कोई दवाई नहीं होगी जो समय के साथ सस्ती होती हो। दवाईयां हमेशा ही मेहेंगी होती है, जबकि एक बार अपनी अनुसन्धान पे लगे पैसे का भुक्तान होने पे दवाई के दाम गिरने चाहिए। लेकिन बड़ी बड़ी मेडिकल कंपनियां वही दवाई में मामूली फेर बदल कर उसे मेहेंगा करती रहती है और पुराणी दवाईयों को बाजार से हटा देती है।
५. इलाज के भाव का कोई आधार नहीं: एक ही इलाज के एक ही शहर में आपको दस अलग भाव मिलेंगे। ऐसा इसलिए है की किसी भी इलाज के भाव का किसी भी डॉक्टर के पास कोई आधार नहीं है। सब अपनी मर्ज़ी से इलाज के दाम तये करते है। कॉर्पोरेट और प्राइवेट हॉस्पिटल मानक इलाज जैसे की कीमोथरेपी जिसमे डॉक्टर की कोई खास भूमिका नहीं है उसमे भी यह हॉस्पिटल क्वालिटी कह के भारी बिल बनाते है।
६. भारतीय सरकार नए मेडिकल उत्पादों की कठोर जांच नहीं करती: अमेरिका में बानी मशीन जो उनके वहां के लोगो के हिसाब से बनायीं गयी है, जैसे की लेज़र ट्रीटमेंट आदि, कॉर्पोरेट हॉस्पिटल एडवर्टीस्मेंट के लिए खरीद लते है। इन नयी मशीनो को चलाने का प्रशिक्षण हमारे कॉलेज में डॉक्टरों को नहीं दिया जाता। परन्तु डॉक्टरों को कॉर्पोरेट हॉस्पिटल और मेडिकल कम्पनिया इन मशीनो के इस्तेमाल के लिए मजबूर करती है और डॉक्टर मरीज़ पे बिना जाने इन मशीनो का इस्तेमाल सीखते है। इन मेहेंगी मशीनों के बिल भी मेहेंगे होते है और जो इलाज मौजूदा उपकरणों से सस्ते में और बेहतर से हो सकता है उसी को इन मशीनों से मेहेंगे में किया जाता है।
७. कॉर्पोरेट हॉस्पिटल में डॉक्टरों को ऑपरेशन और सर्जरी के लक्ष्य दिए जाते है। इन लक्ष्य को डॉक्टरों को हर हालत में पूरा करना होता है वर्ना उन्हें हॉस्पिटल से निकाल दिया जाता है। इस कारण डॉक्टर बिना बीमारी के भी ऑपरेशन और सर्जरी करता रहता है ताकि उसका महीने का लक्ष्य पूरा हो सके।
८. प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की फीस: देश में लगभग आधे मेडिकल विद्यार्थी निजी कॉलेजों में पढ़ के MBBS बन रहे है। लगभग सभी मेडिकल कॉलेज लाखो रुपये केपिटैषण फीस मांगते है जिसके तहत गरीब बचे मेडिकल कॉलेज जा ही नहीं पाते। जब आप गरीब लोगो को डॉक्टर बन ने से ही रोक देते है तो डॉक्टर गरीबो की लाचार हालत भी नहीं समज पाते और उनका शोषण बिना किसी दुःख के कर लेते है। साथ ही साथ जब बच्चे अपनी पढाई के लिए लाखो करोडो रुपये डोनेशन या फीस के रूप में देते है तो उन्हें इसके भुक्तान के लिए कॉर्पोरेट लूट और निजी स्वार्थ में काम करना ही पड़ता है। इस भारी खर्चे के दबाव में कॉलेज से बहार आये छात्र सब भूल जाते है और मेडिकल कंपनियों और कॉर्पोरेट हॉस्पिटलों के आगे बिक जाते है।
९. इंश्योरन्स का असली सच: सरकार हर साल करोडो लोगो का इंश्योरन्स के नाम पे खर्चा उठती है। करोडो भारतीय नागरिको से टैक्स लेके सरकार यह पैसे इंश्योरन्स कंपनियों को प्रीमियम में भरती है। जिस देश की अधिकतर जनता अशिक्षित हो और इंश्योरन्स के जोल जमले को न समझती हो ऐसे में लोग अपना इलाज तो प्राइवेट हॉस्पिटल में करवाते है पर बिना इंश्योरन्स का इस्तेमाल किये। हर साल हज़ारो करोड़ रुपये की धनराशि सरकारी ख़ज़ाने से इंश्योरन्स कंपनियों को दी जाती है और हर साल सरकारी डाटा ही बताता है की भारतीय नागरिक करीबन ६५(65) प्रतिशत स्वास्थ्य देखभाल खर्चा अपनी जेब से देता है। अगर सरकार को लोगो के खर्चे की इतनी ही फ़िक्र होती तो वह सरकारी हॉस्पिटल को बेहतर बना के मुफ्त में इलाज दे देती परन्तु वे इंश्योरन्स कंपनी को बिचौलिया बना के उन्हें हमारे टैक्स का मुनाफा देती है।
इसके सिवाए इंश्योरन्स का फ़ायदा उठाने के लिए कॉर्पोरेट हॉस्पिटल और प्राइवेट हॉस्पिटल फर्जी के इलाज, ऑपरेशन और सर्जरी कर देते है ताकि उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा भुक्तान मिल सके।
१०. कही सारे हॉस्पिटल मरीज़ की लाचारी का इस हद तक फ़ायदा उठाते है की वह गर्भवती महिला से डिलीवरी के बिलकुल पहले मेडिकल उपकरण या कोई किताबे मंगवा देते है, या ऑपरेशन के पहले अनौपचारिक रूप से भुक्तान मांगते है। गंभीर और लाचार स्थिति में गरीब हो या अमीर कही न कही से पैसे या माँगा हुआ सामान दे ही देता है।

यह लेख मैंने आम जनता को जागरूक करने के लिए लिखा है की कॉर्पोरेट हॉस्पिटल और हमारे स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में किस प्रकार की नीच लूट मचाई जा रही है। एक तरफ हमारे सरकारी होस्पाइटालो को बेकार बोल बोल के और उनको दिए जाने वाली निधि कम कर करके उनकी क्वालिटी गिरायी जा रही है और दूसरी तरफ प्राइवेट हॉस्पिटलों पे कोई रोक नहीं लगाई जा रही है। इस बीच देश का गरीब ना तो अच्छा इलाज करवा पा रहा है और न ही अपनी आर्थिक स्थिति को बनाये रख पा रहा है।
पिछले पचीस सालों से देश की स्वास्थ्य देखभाल पे सरकारी निधि काम होती जा रही है। उसके ऊपर दिन पर दिन सरकारी हॉस्पिटलों को भी परिवातिसे या निजीकरण करने की बात की जा रही है। स्वास्थ्य में निधि कम करके, मेडिकल कॉलेज की फीस को बिना रोक टोक के बढ़ने देना और प्राइवेट हॉस्पिटलों को सरकारी हॉस्पिटलों के ऊपर बढ़ावा देकर सरकार एक बहुत खतरनाक खेल खेल रही है जिसका सबसे बड़ा भार देश का सबसे गरीब उठा रहा है।

में अपने आने वाले लेखों में आपको इस हालत को सुधारने का एक तरीका बताऊँगा।

ऊपर दिए गए सभी विचार डिस्सेंटिंग डायग्नोसिस किताब से लिए गए है। हलाकि ये विहार उस किताब से है लेकिन में इन विचारो से पूरी तरह सहमत हूँ और इनकी पूरी ज़िम्मेदारी लेता हूँ। अगर किसी को इन विचारों से असहमति हो तोह में उससे तर्क वितर्क करने को उत्सुक हूँ और गलत होने पर इन्हे बदलने को भी तैयार हु लेकिन अगर आप इन विचारो से सहमत हो तोह इन्हे अपनी ज़िन्दगी में अपनाये और आगे लोगो को भी इन विचारो से परिचित करें।

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